Spiritual/धर्म नंदगांव-बरसाने की लठामार होली के बाद शनिवार को यहां गोकुल में छड़ी से होली की धूम मची। इस अनूठी परंपरा के बीच छड़ी लेकर छबीले छैल छकनियां को गोपियों ने खूब छकाया। कृष्ण-बलराम ने गोपियों और ग्वालों के साथ घंटों तक होली खेली। भगवान के बाल स्वरूप के साथ होली खेलने में गोपियों ने यह ख्याल भी रखा की कहीं लाला को छड़ी से चोट न लग जाए। द्वापर युग में कृष्ण कन्हैया की बाल लीलाओं में छड़ी मार होली की अनूठी परंपरा है। गोकुल में कृष्ण का बचपन गुजरा, इसलिए यहां बाल स्वरूप में उनकी सबसे ज्यादा मान्यता है। कुछ ऐसी ही भावनाओं के साथ शनिवार को गोकुलवासी कृष्ण-बलराम के साथ होली खेलने के लिए आतुर नजर आए। प्रात: 11.30 बजते-बजते नंदभवन पर गोप-गोपियों का समूह उमड़ पड़ा। उनसे भी ज्यादा आतुरता दूर-दराज से छड़ी मार होली देखने पहुंचने वाले श्रद्धालु-पर्यटकों में दिखी। हाथ में अबीर-गुलाल की पोटली लिए श्रद्धालु कृष्ण-बलराम के स्वरूपों के दीदार को बेताब रहे। नाचते-गाते रंग-गुलाल उड़ाते गोप समूह पालकी के साथ नंदचौक पहुंचे तो मस्ती परवान चढ़ने लगी। सड़कों पर फूलों की चादर बिछ गई तो आसमान में अबीर-गुलाल के बादल घुमड़े लगे। बैंडबाजों पर गोपियों ने नृत्य शुरु किया तो ग्वाल-वाल भी उनके साथ हो लिए। विभिन्न मार्गों से होते हुए कान्हा की पालकी मुरलीधर घाट पहुंची। यहां ठाकुरजी का भोग लगाया गया।
previous post
next post