सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर तलाक-ए-हसन की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। तलाक-ए-हसन के अनुसार एक पुरुष तीन महीने के लिए महीने में एक बार ‘तलाक’ कह कर पत्नी को तलाक दे सकता है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता से रजिस्ट्रार के समक्ष मामले का उल्लेख करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता पत्रकार बेनजीर हीना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने तलाक-ए-हसन की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि महिला को दो नोटिस भेजे गए हैं। आनंद ने दलील दी कि तलाक-ए-हसन को लेकर पहला नोटिस 19 अप्रैल को और आखिरी नोटिस 19 मई को दिया गया था। यह याचिका 2 मई को दायर की गई थी। इसमें महिला को दो बार तलाक का नोटिस दिया गया है। महिला का एक बच्चा भी है।