हाल ही में मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए पीएम ने कहा कि किसी भी देश में सुराज का आधार न्याय होता है। इसलिए न्याय जनता से जुड़ा हुआ और जनता की भाषा में होना चाहिए। जब तक न्याय के आधार को आमजन नहीं समझता, उसके लिए न्याय और राजकीय आदेश में फर्क नहीं होता। एक बड़ी आबादी के लिए न्यायिक प्रक्रिया से लेकर फैसलों तक को समझना मुश्किल होता है। अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिक का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा। ऐसे में स्थानीय भाषाओं का अदालतों के कामकाज की भाषा बनना और सस्ता, सुलभ व त्वरित न्याय की राह में उसके असर की पड़ताल करना आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। कहा जाता है कि न्याय होना जितना जरूरी है, न्याय होते हुए दिखना भी उतना ही जरूरी है। यह न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को मजबूत करता है। दुर्भाग्य से भाषा की दीवार देश में ऐसा होने नहीं देती। न्याय पाने के जितने बड़े दरवाजे हैं, उन सबकी चाबी अंग्रेजी है। किसी ग्रामीण के लिए सुप्रीम कोर्ट किसी विदेश से कम नहीं। वहां उसकी समझ में आने वाली भाषा बोलने वाला कोई नहीं दिखता है। यही दीवार उसके और न्याय के बीच खड़ी रहती है।