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तिब्बत आए शी जिनपिंग, भारत के साथ सीमा विवाद के बावजूद अरुणाचल से सटे शहर का दौरा किया

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत का दौरा किया है। उनकी यह यात्रा भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच हुई है। 2011 में सत्ता संभालने के बाद उनका यह पहला तिब्बत दौरा है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, राष्ट्रपति शी बुधवार को न्यिंगची मेनलैंड एयरपोर्ट पहुंचे थे। यहां स्थानीय लोगों और अधिकारियों ने उनका स्वागत किया।शी ने ब्रह्मपुत्र नदी के बेसिन में इकोलॉजिकल और एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन का जायजा लेने के लिए न्यांग नदी पर बने पुल का दौरा किया, जिसे तिब्बती भाषा में यारलुंग जांगबो कहा जाता है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे विशाल बांध बना रहा है और भारत इसका विरोध कर रहा है।रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी राष्‍ट्रपति इस समय तिब्‍बत की राजधानी ल्‍हासा में हैं। उन्होंने अरुणाचल सीमा का दौरा ऐसे समय पर किया है, जब हाल ही में चीन ने पहली बार पूरी तरह बिजली से चलने वाली बुलेट ट्रेन का संचालन शुरू किया है। यह बुलेट ट्रेन राजधानी ल्‍हासा और न्यिंगची को जोड़ेगी। इसकी रफ्तार 160 किमी प्रतिघंटा है।राष्ट्रपति शी इस ट्रेन को लेकर कह चुके हैं कि यह स्थिरता को सुरक्षित रखने में मदद करेगी। उनका इशारा अरुणाचल से लगी सीमा से था। अगर चीन-भारत का युद्ध होता है तो यह रेलवे लाइन रणनीतिक रूप से उसके काफी काम आएगी। चीन यहां बुनियादी ढांचा विकसित करने में जुटा है। रेल के साथ-साथ सड़क मार्ग को भी दुरुस्त किया जा रहा है।न्यिंगची तिब्बत का एक अहम शहर है, जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है और उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। भारत इस दावे को सिरे से खारिज करता रहा है। भारत-चीन सीमा विवाद में 3,488 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) शामिल है।दरअसल, चीन और तिब्बत के बीच विवाद बरसों पुराना है। चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी में चीन का हिस्सा रहा है इसलिए तिब्बत पर उसका हक है। तिब्बत चीन के इस दावे को खारिज करता है। 1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उस समय चीन ने कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन करीब 40 साल बाद चीन में कम्युनिस्ट सरकार आ गई। इस सरकार की विस्तारवादी नीतियों के चलते 1950 में चीन ने हजारों सैनिकों के साथ तिब्बत पर हमला कर दिया। करीब 8 महीने तक तिब्बत पर चीन का कब्जा रहा।आखिरकार तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के बाद तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया। हालांकि दलाई लामा इस संधि को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि ये संधि जबरदस्ती दबाव बनाकर करवाई गई थी। संधि के बाद भी चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आया और तिब्बत पर उसका कब्जा जारी रहा। इस दौरान तिब्बती लोगों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा। 1955 के बाद पूरे तिब्बत में चीन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन होने लगे। इसी दौरान पहला विद्रोह हुआ जिसमें हजारों लोगों की जान गई।

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