Spiritual/धर्म

सावन शिवरात्रि आज, रात्रि के समय जरूर करें भगवान शिव के इन मंत्रों का जाप

आज यानी 15 जुलाई 2023 शनिवार, के दिन श्रावण शिवरात्रि व्रत रखा जा रहा है। आज के दिन भगवान शिव की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साथ ही सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की उपासना रात्रि के समय की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को समर्पित कुछ मंत्रों का जाप करने से भी साधक को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में सावन शिवरात्रि के शुभ अवसर पर जरूर करें, भगवान शिव के इन मंत्रों का जाप, चालीसा का पाठ और पूजा के अंत में आरती।

सावन शिवरात्रि 2023 पूजा मुहूर्त
सावन शिवरात्रि प्रथम पहर पूजा- शाम 07:21 से रात्रि 09:54 तक
द्वितीय प्रहर पूजा- रात्रि 09:54 से मध्य रात्रि 12:37 तक
तृतीय प्रहर पूजा- रात्रि 12:37 से प्रातः 03:00 तक
चतुर्थ एवं अंतिम प्रहर पूजा- सुबह 03:00 बजे से सुबह 05:33 तक

भगवान शिव के प्रभावशाली मंत्र
* नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ।।
* ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
* शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ।।
करें शिव चालीसा का पाठ
।। दोहा ।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ।।
।। चौपाई ।।
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ।।
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ।।
मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ।।
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ।।
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ।।
आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ।।
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ।।
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ।।
कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।।
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ।।
जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ।।
मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ।।
धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ।।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।।
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ।।
नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ।।
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ।।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ।।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ।।
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ।।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ।।
।। दोहा ।।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ।।
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ।।

भगवान शिव की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। जय शिव ओंकारा….
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ।। ॐ जय शिव ओंकारा….
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ।। ॐ जय शिव ओंकारा….

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