भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के चार क्रांतिकारियों को 17 दिसंबर (राजेंद्रनाथ लाहिड़ी) और 19 दिसंबर (अशफाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह) को 1927 में फांसी दी गई थी। 19 दिसंबर को देश में शहादत दिवस मनाया जाता है। इस दिन का ऐतिहासिक और देशप्रेम के लिहाज से बहुत महत्व है। देश के इतिहास में काकोरी की घटना की अपनी अलग ही पहचान है। जिसका केवल एक ही उद्देश्य अंग्रेजी शासन के विरूद्ध सरकारी खजाना लूटना और उन पैसों से हथियार खरीदना था।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना
वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था। एक अभियान जिसने भारतीयों को किसी भी गतिविधि से अपना समर्थन वापस लेने के लिए कहा, जो “भारत में ब्रिटिश सरकार और अर्थव्यवस्था को बनाए रखता है।” गांधी ने अंततः स्व-शासन प्राप्त करने के लिए सत्याग्रह के अपने तरीकों का उपयोग करते हुए, इस आंदोलन को अहिंसक होने की कल्पना की थी। लेकिन असहयोग आंदोलन में शामिल कुछ प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए थे। 4 फरवरी 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। जिसने इस आंदोलन से जुड़े बहुत से लोगों को रोष से भर दिया। गांधी जी का साफ कहना था कि वो एक अहिंसावादी आंदोलन चाहते थे। लेकिन हिंसा की वजह से इसे वापस लेने का फैसला किया गया। लेकिन दूसरे पक्ष यानी युवानों का मानना था कि आंदोलन के लिए उन्होंने अपना करियर, जीवन सब छोड़ा। लेकिन बीच में आंदोलन छोड़ने की सूरत में क्या करेंगें? इनमें रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान भी शामिल थे। जिसके बाद बंगाल और उत्तर के राज्यों में कुछ नए संगठन तैयार हो गए। इनका मकसद भी गोरी हुकूमत से देश की आजादी ही थी। लेकिन ये कांग्रेस और गांधीजी के तौर तरीकों से पूरी तरह सहमत नहीं थे। इसलिए एक नई पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई गई। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान दोनों ही समूह के संस्थापकों में से थे। अन्य लोगों में सचिंद्र नाथ बख्शी और ट्रेड यूनियनिस्ट जोगेश चंद्र चटर्जी शामिल थे। चंद्र शेखर आजाद और भगत सिंह जैसे आंकड़े भी एचआरए में शामिल होंगे। 1 जनवरी, 1925 को जारी उनके घोषणापत्र का शीर्षक क्रांतिकारी (क्रांतिकारी) था। इसने घोषणा की, “राजनीति के क्षेत्र में क्रांतिकारी दल का तात्कालिक उद्देश्य एक संगठित और सशस्त्र क्रांति द्वारा संयुक्त राज्य भारत के एक संघीय गणराज्य की स्थापना करना है।”
काकोरी ट्रेन एक्शन घटना क्या थी?
अगस्त 1925 में काकोरी में ट्रेन डकैती एचआरए की पहली बड़ी कार्रवाई थी। 8 नंबर की डाउन ट्रेन शाहजहाँपुर और लखनऊ के बीच चलती थी। उसमें रखा अंग्रेजों का जो खजाना क्रांतिकारियों ने लूटने की योजना बनाई, जिसे वे वैसे भी वैध रूप से भारतीयों का मानते थे। उनका उद्देश्य एचआरए को निधि देना और अपने काम और मिशन के लिए जनता का ध्यान आकर्षित करना दोनों था। ये उस दौर में ये अंग्रेजों के खिलाफ एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम था। जिस जगह पर इस ट्रेन को रोककर इसका खजाना लूटा गया था। उस जगह का नाम काकोरी है।
19 दिसंबर को दी गई फांसी
क्रांतिकारी संगठन के दस सदस्यों से काकोरी स्टेशन से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन में प्रवेश किया। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से आगे चली। बिस्मिल ने ट्रेन की चेन खींच दी। चंद्रशेखर आजाद, अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ भी ट्रेन में मौजूद थे। अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों को ही मिली चुनौती से वे परेशान हो गए थे। करीब 50 गिरफ्तारियां की गई। इसके बाद दिसंबर 1927 में क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल अश्फाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई।