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भक्ति की शक्ति ने बचाए राजा के प्राण

उत्तर रामायण में एक प्रसंग अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने बड़ी सभा आयोजित कर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, यक्षों, राजाओं आदि को आमंत्रित किया। सभा में किसी कारणवश एक राजा पर ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए। उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पूर्व श्रीराम ने उस राजा को मृत्युदंड नहीं दिया तो वो राम को श्राप दे देंगे।

इस पर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पूर्व मारने का प्रण ले लिया। श्रीराम के प्रण की खबर पाते ही राजा भागा-भागा हनुमान जी की माता अंजनी की शरण में गया तथा बिना पूरी बात बताए उनसे अपने प्राण रक्षा का वचन मांग लिया। तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजा की प्राण रक्षा का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्रीराम की शपथ लेकर माता को वचन दिया कि कोई भी इनका बाल बांका नहीं कर पाएगा। बाद में जब राजा ने बताया कि भगवान श्रीराम ने ही उसके वध का प्रण किया है तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए। हनुमान जी सोचने लगे कि राजा के प्राण भी बचाने हैं क्योंकि माता को वचन दिया है तथा भगवान श्रीराम को श्राप से भी बचाना है।

धर्म संकट में फंसे हनुमानजी को एक युक्ति सूझी। हनुमान श्री राम के नाम की महिमा को बहुत अच्छे से जानते थे, हनुमान जी ने राजा से सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा। हनुमान जी खुद सूक्ष्म रूप में राजा के पीछे छिप गए। जब राजा को खोजते हुए श्री राम सरयू तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजा राम-राम जप रहा है। राम जानते थे कि राम नाम जपने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता। वो असहाय होकर राजभवन लौट गए।

विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर श्राप देने को उतारू हो गए और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा। इस बार राजा हनुमान जी के इशारे पर जय सियाराम जय जय हनुमान का जाप करने लगा। ऐसे में कोई अस्त्र-शस्त्र राजा का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। इस संकट को देखकर श्रीराम सोच में पड़ गए तब ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में न डालें।

उन्होंने कहा कि श्रीराम चाहकर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योंकि जो बल राम के नाम में है, वह खुद राम में नहीं है। यह सुनकर ऋषि विश्वामित्र ने श्री राम को अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला संभलते देख हनुमान अपने रूप में आ गए और श्रीराम के चरणों में बैठ गए। तब प्रभु श्रीराम ने कहा कि हनुमानजी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया है कि भक्ति की शक्ति सैदेव आराध्य से बड़ी होती है। इस प्रकार हनुमानजी ने राम नाम के सहारे श्री राम को भी हरा दिया।

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