Spiritual/धर्म

वट सावित्री व्रत

हिंदु पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है। पति की लंबी आयु के लिए सुहागिनें वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस साल यह व्रत 22 मई को है। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं। कहते हैं कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर कथा पढ़ती है और वट वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधती है। पूजा के बाद सौभाग्यवती महिला अपनी सास को वस्त्र और श्रृंगार का देकर उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेती है। बहुत पहले की बात है अश्‍वपति नाम का एक सच्चा ईमानदार राजा था। उसकी सावित्री नाम की बेटी थी। जब सावित्री शादी के योग्‍य हुई तो उसकी मुलाकात सत्‍यवान से हुई। सत्‍यवान की कुंडली में सिर्फ एक वर्ष का ही जीवन शेष था। सावित्री पति के साथ बरगद के पेड़ के नीचे बैठी थी। सावित्री की गोद में सिर रखकर सत्‍यवान लेटे हुए थे। तभी उनके प्राण लेने के लिये यमलोक से यमराज के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिए। तब यमराज खुद सत्‍यवान के प्राण लेने के लिए आते हैं।

सावित्री के मना करने पर यमराज उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री वरदान में अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है। यमराज उसे दे देते हैं पर सावित्री यमराज का पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज फिर से उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज तथास्‍तु बोल कर आगे बढ़ते हैं पर सावित्री फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज उसे आखिरी वरदान मांगने को कहते हैं तो सावित्री वरदान में एक पुत्र मांगती है। यमराज जब आगे बढ़ने लगते हैं तो सावित्री कहती हैं कि पति के बिना मैं कैसे पुत्र प्राप्ति कर स‍कती हूं। इसपर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्‍ता देखकर प्रसन्‍न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण वापस कर देते हैं।

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