Spiritual/धर्म जीवन के अज्ञात आयामों को जानने की जिज्ञासा अध्यात्म है। इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को आनंददायक बनाने के कई तरीके हैं। या तो भक्ति मार्ग पर चलिए या साधना कीजिए। साधना का अर्थ है मन की हलचल को भूल कुछ समय के लिए मौन में स्थित हो जाना इस अस्तित्व को अनुभव करने के लिए जब हम अपनी वर्तमान सीमाओं को तोड़कर अगले आयाम में जाने की कोशिश करते हैं, तो इस प्रक्रिया में कुछ चीजें आपस में गड्ड-मड्ड हो जाती हैं। अगर व्यक्ति अपने भीतर जरूरी संतुलन और अंतर को समझने की क्षमता विकसित नहीं करता, तो इस गड्ड-मड्ड से बहुत सारे भ्रम पैदा हो सकते हैं।अब मान लीजिए कि आप आध्यात्मिक प्रक्रिया में आगे बढ़े और अचानक यह सब शुरू हो जाए तो आपको समझ ही नहीं आएगा कि आप कहां खड़े हैं। जो लोग इन चीजों के बारे में बिल्कुल नहीं जानते, जो लोग अपने सांसारिक जीवन के बहाव में सहज बहे जा रहे हैं, वे यह बात भलीभांति जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं, जबकि आध्यात्मिक लोग हमेशा भ्रम में रहते हैं। अगर आप भ्रमित हैं तो इसका मतलब है कि आप लगातार नए इलाके में जा रहे हैं और इसी वजह से आप भ्रम में हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं है। अगर आप लगातार परिचित माहौल में रहते हैं, तो इसमें निश्चितता तो होगी, लेकिन विकास की कोई गुंजाइश नहीं होगी। इसलिए पीछे रहने से बेहतर है, इस भ्रम से उचित और उपयोगी ढंग से निपटा जाए।यह काफी कुछ सर्कस के कलाबाजी वाले झूले की तरह है। जब तक आप अपने झूले के साथ झूलते हैं, तब तक तो आपके लिए सब ठीक होता है, लेकिन जब आप उस रस्सी को छोड़कर कोई दूसरी रस्सी पकड़ने की कोशिश करते हैं, तो दोनों रस्सियों के बीच की जो स्थिति होती है, वह काफी भयावह होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आप जानते हैं कि इस दौरान न आप इधर के हैं और न ही उधर के। जो लोग भी जीवन के दूसरे आयामों के बारे में पता लगाना, जानना और अनुभव करना चाहते हैं, उन सब की दशा ऐसी ही होती है। वे जीवन के दूसरे पहलू को जानना तो चाहते हैं, लेकिन वे अपने परिचित आयाम को एक पल के लिए भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते। इसलिए उनका संघर्ष बेमतलब लंबा हो जाता है। अगर आप एक भक्त हैं, तो आपके भ्रमित होने में कोई दिक्कत नहीं है।
previous post