वसंत पंचमी। हरीतिमा चादर में लिपटी भारत भूमि के प्राकृतिक श्रृंगार की मनोहर छटा का नव उल्लास। मां वीणा वादिनी का अवतरण दिवस। यही तो है ऋतुराज वसंत का दिन। जो चारों दिशाओं में अनुरंजित है। प्रकृति तो जैसे कलरव गान करने को आतुर है। हर मानवीय चेहरे पर सुहावने मौसम की झलक का प्रादुर्भाव। सब कुछ नया। तभी तो कहा जाता है कि वसंत ऋतुओं का राजा है। कहा जाता है कि जिसके जीवन में वसंत की कौंपलें नहीं आतीं, वह कभी नया नहीं सोच सकता। नया सृजन भी नहीं कर सकता। वसंत पंचमी को एक प्रकार से माता सरस्वती का संगीतमय अभिवादन निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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