चांदनी चौक में खरीदारी करने आए सुबोध कुमार से बृहस्पतिवार दोपहर 12 बजे जब यह पूछा गया कि आज आप दिल्ली की आबोहवा को कैसा मान रहे हैं तो उनका कहना था कि धूप खिली हुई है और आज प्रदूषण नियंत्रण में है। इसी तरह, यहां परिवार के साथ शादी की खरीदारी करने आईं रश्मि ने पूछने पर बताया कि आज आसमान साफ है और प्रदूषण नहीं के बराबर लग रहा है। लेकिन, जब इन दोनों को यह बताया गया कि इस समय इस क्षेत्र में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 364 है, जो बहुत खराब की श्रेणी में आता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ।वास्तव में आम दिल्लीवासी थोड़ा सा मौसम खुला होने पर यह मानते हैं कि हवा आदर्श स्थिति के करीब आ गई, जबकि उस समय भी यह बहुत खराब श्रेणी में होती है। यह स्थिति हकीकत से मुंह मोड़ने जैसी है। यदि दिल्लीवासी और दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण करने में जुटी एजेंसियां खिली हुई धूप या खुले मौसम को देखकर प्रदूषण का अंदाजा लगाएंगी तो इस प्रदूषण से निजात मिलना मुश्किल ही है।स्थिति इतनी खतरनाक है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण लोगों को तभी नजर आता है, जब यह गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है। तभी न सिर्फ दिल्लीवासी हायतौबा मचाते हैं और तभी ही सरकारी अमला भी वायु प्रदूषण नियंत्रण के स्कूल बंद कर देने या वर्क फ्राम होम करने जैसे उपायों में जुटता है। जबकि यह एक कड़वी सच्चाई है कि वर्षभर दिल्ली में औसत एक्यूआइ तय मानक के मुकाबले तीन से चार गुना अधिक रहता है। यानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों की वर्षभर आवश्यकता है और पूरे साल इसे एयर इमरजेंसी के तौर पर देखा जाना चाहिए।