Spiritual/धर्म

चंद लोगों के प्रयत्न से शुरू हुई कानपुर की इस रामलीला ने लिया भव्य रूप

देश भर में दशहरा पर रावण दहन को लेकर तरह-तरह की परंपराएं प्रचलित हैं। हालांकि जालंधर में दशहरा का महिलाओं और बच्चों को एक विशेष कारण से इंतजार रहता है। उन्हें तो वर्ष में केवल इसी दिन मां महाकाली के दर्शन करने का अवसर जो मिलता है। सिद्ध शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर में स्थित प्राचीन महाकाली मंदिर की पहली मंजिल पर स्थित मां महाकाली का दीदार महिलाएं व बच्चे केवल दशहरा के दिन ही कर सकते हैं। यह परंपरा वर्षों पुरानी है। इसे लेकर शुक्रवार को दिन भर मंदिर में महिलाओं व बच्चों की पंक्ति लगी रही। यह परंपरा मंदिर के निर्माण के समय से चली आ रही है। मंदिर कमेटी के सदस्य व पूर्व विधायक केडी भंडारी बताते हैं कि बाबा मोहनी के निर्देश पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। उनके फैसले के बाद महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।मंदिर के सेवादार अशोक सोबती बताते हैं कि ट्रस्ट महाकाली मंदिर का जिक्र कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। बताया जाता है कि इस मंदिर में महाराज रणजीत सिंह भी मां के दर्शन करने आए थे। इस मंदिर में कई दशक पूर्व मोहनी बाबा तपस्या के लिए पहुंचे तो यहां पर मां के दर्शन प्राप्त करने के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया। कहतै हैं कि तपस्या के दौरान उन्होंने किसी भी नारी को अपने समीप नहीं आने दिया। यहीं कारण रहा कि मंदिर के निर्माण के साथ ही इसमें महिलाओं के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।मंदिर के सदस्य नरिंदर सहजपाल बताते हैं कि नवरात्र उत्सव के दौरान मां की उपासना व घर में खेत्री की बिजाई करने के चलते नवमी के अगले दिन दशमी पर ही महिलाएं इस मंदिर में दर्शन कर सकती है। उन्होंने बताया कि मंदिर के निर्माण से लेकर ही यह परंपरा चली आ रही है।मंदिर के सेवादार अशोक सोबती बताते हैं कि ट्रस्ट महाकाली मंदिर का जिक्र कई धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। बताया जाता है कि इस मंदिर में महाराज रणजीत सिंह भी मां के दर्शन करने आए थे। इस मंदिर में कई दशक पूर्व मोहनी बाबा तपस्या के लिए पहुंचे तो यहां पर मां के दर्शन प्राप्त करने के बाद इस मंदिर का निर्माण करवाया। कहतै हैं कि तपस्या के दौरान उन्होंने किसी भी नारी को अपने समीप नहीं आने दिया। यहीं कारण रहा कि मंदिर के निर्माण के साथ ही इसमें महिलाओं के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

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