तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में अगर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर कान्हा का मेला लगता है तो इसी नगरी में देवष्ठान एकादशी के एक दिन पहले कंस का भी मेला लगता है। इस बार यह मेला 24 नवम्बर को मनाया जाएगा। असत्य पर सत्य की विजय , अत्याचार और अनाचार पर सदाचार की विजय का प्रतीक बना कंस मेला हजारों वर्ष बाद भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए है क्योंकि यह मेला चतुवेर्द समाज का एक प्रकार से प्रमुख मेला होता है। इसमें देश विदेश में रहने वाले चतुवेर्द समाज के लोग भाग लेने के लिए आते हैं जिससे यह मेला चतुवेर्द समाज का समागम बन जाता है। इतिहास साक्षी है कि जिस किसी ने जनकल्याण का बीड़ा उठाया,वह पूूजनीय हुआ। भगवान श्रीकृष्ण इस धरती पर मानव वेश में आए और चमत्कारी कार्य करके लोगों को यह संदेश दिया कि यदि व्यक्ति चाहे तो उसके लिए कोई कार्य असंभव नही है और असत्य, छल आदि के बल पर उसे दबाया नही जा सकता । ब्रज की विभूति रहे स्व. पंडित बालकृष्ण चतुवेर्दी की पुस्तक ‘माथुर चतुवेर्द ब्राह्मणों का इतिहास’ में लिखा है कि बज्रनाभ काल से कंस का मेला चला आ रहा है। माथुर चतुवेर्द परिषद के संरक्षक महेश पाठक का कहना है कि कंस का मेला केवल चतुवेर्द समाज के कार्यक्रम के रूप में नही देखा जाना चाहिए ।जिस प्रकार रामलीला के माध्यम से नई पीढ़ी में संस्कार डालने का प्रयास होता है वैसे ही कंस मेले के माध्यम से चतुवेर्द समाज के बालकों को संस्कारित किया जाता है। यह मेला विदेश में रह रहे चतुवेर्द बालकों को एक दिशा देता है क्योंकि इसमें हर पीढ़ी के लोग इकट्ठा होते हैं।
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