Spiritual/धर्म

22 भाषाओं के जानकार, 80 से अधिक रचनाएंजानें धीरेंद्र शास्त्री के गुरु रामभद्राचार्य को

मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री इन दिनों चर्चा में हैं। शास्त्री पर नागपुर में अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगा था। तब से उनके पक्ष और विरोध में कई लोग सामने आ चुके हैं। यहां तक कि संत समाज भी धीरेंद्र शास्त्री को लेकर बंटा हुआ है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि अगर धीरेंद्र शास्त्री के पास इतनी ही शक्ति है तो वह इसकी मदद से जोशीमठ की दरारों को क्यों नहीं भर देते? वहीं, धीरेंद्र शास्त्री के गुरु रामभद्राचार्य अपने शिष्य के समर्थन में उतर आए हैं। रामभद्राचार्य ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयान पर पलटवार किया है। आइये जानते हैं आखिर रामभद्राचार्य कौन हैं? उनकी कहानी क्या है?

कौन हैं धीरेंद्र शास्त्री के गुरु? 
धीरेंद्र शास्त्री के गुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं। धीरेंद्र शास्त्री ने रामभद्राचार्य से ही श्रीराममंत्र की दीक्षा ली है। उन्होंने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में इस बात की जानकारी दी। रामभद्राचार्य ने कहा, ‘धीरेंद्र शास्त्री का आचरण और चरित्र काफी अच्छा रहा। इसलिए मैंने उन्हें दीक्षा दी। हमारे यहां चरित्र की पूजा होती है। एक अच्छे शिष्य के अंदर जितने गुण होते हैं, वो सभी गुण उनके पास हैं।’

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम गिरधर मिश्रा है। जब वह दो साल के थे, तभी उन्हें ट्रकोम नाम की बीमारी हो गई। गांव की एक महिला ने कोई दवा डाली तो आंखों से खून निकलने लगा। उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। बचपन में आंखों की रोशनी जाने के बाद गिरधर ने काफी समस्याएं झेलीं। उनके पिता मुंबई में नौकरी करने चले गए। तब उनके दादा ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी। गिरधर को रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास जैसी किताबों का पाठ कराया। गिरधर ने महज तीन साल की उम्र में श्रीराम से जुड़ी अपनी रचना अपने दादा को सुनाई तो सब दंग रह गए। ये रचना अवधी में थी। बड़े हुए तो सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि ली। अयोध्या के ईश्वरदास महाराज से उन्होंने गायत्री मंत्र और राममंत्र की दीक्षा ली। तभी से उनका नाम भी रामभद्राचार्य हो गया। जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है। वे 22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं। अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं। न पढ़ सकते हैं। न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है। उन्होंने केवल सुनकर शिक्षा हासिल की। बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। उनकी इस ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

धीरेंद्र शास्त्री के लिए क्या-क्या बोले रामभद्राचार्य? 
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को लेकर चल रहे विवाद पर भी रामभद्राचार्य ने कहा, ‘मेरा शिष्य बहुत अच्छा है। वह जो कुछ करता है वो प्रमाणिक होता है। उसे निशाने पर लेकर सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। पृथ्वी पर सबकुछ संभव है। साधना और तपस्या से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। केवल मूर्खों की डिक्शनरी में ही असंभव जैसा शब्द है। धीरेंद्र की लोकप्रियता को लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। यह सनातन को बदनाम करने की साजिश है।’
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के आरोपों पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा, ‘जोशीमठ की दरारों को भरने का सबसे पहला कर्तव्य तो खुद अविमुक्तेश्वरानंद का है। वही खुद को शंकराचार्य होने का दावा करते हैं। हां, अगर वह सार्वजनिक तौर पर कह दें कि वह ऐसा नहीं कर सकते तो मैं अपने शिष्य से बोल दूंगा।’ रामभद्राचार्य ने ये भी बताया कि वह अभी पीओके को भारत में शामिल कराने के लिए तप कर रहे हैं।

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