दिल्ली / एनसीआर

चार धाम यात्रा को मिलेगा नया आयाम

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास से दल को रवाना करते हुए ट्रेकर्स को शुभकामनाएं दीं और इसे गर्व का क्षण बताया था। उन्होंने कहा, ‘‘यह गर्व का क्षण है कि हमारे पास उत्तराखंड की पुरानी पगडंडियों का पता लगाने के लिए एक युवा बल है। यह पहल हमारी सदियों पुरानी विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगी।’’ धामी ने कहा कि अभियान से न केवल राज्य में साहसिक खेलों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने, होमस्टे, स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने में भी सहायक सिद्ध होगा। उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (यूटीडीबी) ने ट्रैक द हिमालय संगठन के साथ मिलकर यह अभियान शुरू किया जिसके तहत विशेषज्ञों का 25 सदस्यीय दल चारधाम मार्ग पर पुराने मार्गों को खोजने के लिए 1,156 किमी की दूरी तय करते हुए सभी चार तीर्थों के लिए एक पुराना “पैदल मार्ग” लिया। अपने 50 दिनों के अभियान के दौरान दल पुराने चार धाम मार्गों के अलावा शीतकालीन चार धाम मार्गों का भी पता लगाने के लिए यात्रा की। 24 दिसंबर को लौटने से पहले, उन्होंने 24 अलग-अलग इलाकों को पार किया, जिन्हें गढ़वाल पहाड़ियों में सबसे कठिन माना जाता है। टीम ने जिस मार्ग को ट्रैक करने की कोशिश की वह समय के साथ “खो गया” था और इसकी प्राचीनता पर कई बहसें हुई थीं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, कई ऋषि और मुनि इसका उपयोग पवित्र स्थलों तक पहुंचने के लिए करते थे।कुछ ऋषिकेश-बमोरी-काठगोदाम-भीमताल मार्ग, जबकि अन्य ने नैनी से डायवर्जन लिया और फिर बागेश्वर-आदि, बद्री-सिमली-कर्णप्रयाग और चमोली-बद्रीनाथ का रुख किया। कई अभी भी मानते हैं कि मार्ग  3,000 साल पहले पांडवों द्वारा तय किया गया पुराना ऐतिहासिक मार्ग है। जैसा कि महाभारत में उल्लेख किया गया था। 1940 के दशक तक, जब मार्ग ज्ञात था, तीर्थयात्री हरिद्वार से शुरू होते थे और 14 दिनों में चार धाम तीर्थों की यात्रा पूरी करते थे। वे हर-की-पौड़ी में स्नान करते थे और एक पुजारी के पास जाते थे, जो उन्हें एक गुमस्ता (गाइड) प्रदान करें जो उन्हें धामों तक ले जाए। वाहन आगमन-प्रस्थान लायक सड़कों के निर्माण के बाद मार्ग को छोड़ दिया गया था। अभियान दल को रास्ते में कई ‘चट्टी’ (खुले विश्राम गृह) मिले। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा, “इन विश्राम स्थलों का अपना महत्व था। यदि कोई भक्त किसी चट्टी पर अपना सामान भूल जाता है, तो लोग उसे चिंता न करने के लिए कहते क्योंकि वह उन्हें ठीक उसी स्थान पर प्राप्त हो जाता। लोगों में ऐसा ही विश्वास था।

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